तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के व्यापारीकरण

तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा के व्यापारीकरण

वर्तमान युग में शिक्षा का महत्व अधिक हो गया है। हालांकि, हमारी शिक्षा प्रणाली ने शिक्षा को एक तात्कालिक उपकरण के रूप में परिभाषित किया है, जो केवल नौकरी या व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए होती है। इसके अलावा, शिक्षा के व्यापारीकरण ने उसके मूल्यवान और शैक्षिक पहलुओं को कुचल दिया है।

तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था का अर्थ है कि हमारी शिक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों को उद्योगिक समाज के अनुरूप ढालने का प्रयास किया है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को नौकरी के लिए तैयार करना है। हालांकि, यह शिक्षा का मूल्यवान पहलु यानी व्यक्तिगत और सामाजिक विकास, सोचना सीखना, समस्या समाधान करने की क्षमता विकसित करना, नैतिक मूल्यों को समझना और बढ़ावा देना, आदि, को नजरअंदाज कर देती है।

दूसरी ओर, शिक्षा के व्यापारीकरण ने शिक्षा को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया है, जिसे खरीदा और बेचा जा सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि उनके पास संसाधनों की कमी होने के कारण अधिकांश लोग उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का लाभ नहीं उठा सकते हैं। यह विभाजन न केवल सामाजिक असमानता को बढ़ाता है, बल्कि शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य को भी ध्वस्त करता है।

अंततः, हमें यह समझना होगा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी प्राप्त करने या धन संचय करने में नहीं है। यह व्यक्ति की आत्म-संविदान, सोचना, और समझने की क्षमता को विकसित करने में है। शिक्षा के व्यापारीकरण के विरुद्ध लड़ने के लिए, हमें शिक्षा को एक सामाजिक अधिकार के रूप में मान्यता देनी होगी और सभी के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।